शब्द
बन गये है
एक सेतु
वह लिखती है
दर्द बहाने के लिये
वह पढ़ता है
दर्द बहाने के लिये
उसके दर्द मे
तकलीफ है
इस लिये
उसके शब्द
है कड़वे पर सच
उसकी पीड़ा
है अनकही
नहीं है शब्द
पास उसके
ना कड़वे ना सच
खड़े है दोनो
पीठ कीये
उस सेतु पर
जिसे उसके
शब्दो ने बनाया है
ओर बाँट रहे है
अनकहा
बन गये है
एक सेतु
वह लिखती है
दर्द बहाने के लिये
वह पढ़ता है
दर्द बहाने के लिये
उसके दर्द मे
तकलीफ है
इस लिये
उसके शब्द
है कड़वे पर सच
उसकी पीड़ा
है अनकही
नहीं है शब्द
पास उसके
ना कड़वे ना सच
खड़े है दोनो
पीठ कीये
उस सेतु पर
जिसे उसके
शब्दो ने बनाया है
ओर बाँट रहे है
अनकहा
2 comments:
सच में पीड़ा अनकही होती है... पीड़ा में शब्द भी बेजान हो जाते हैं और कुछ बयाँ होना नामुमकिन हो जाता है.
कुछ शब्द मैने भी सीख लिये हैं
कुछ अपने हैं , कुछ उधार लिये हैं...
Waah !!!
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