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Tuesday, April 13, 2010

शब्दों का नया ठिकाना

शब्दों ने साथ देना छोड़ दिया हैं मेरा
शब्दों ने शायद खोज लिया हैं नया ठिकाना

8 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

शब्‍द कभी साथ नहीं छोड़ते
वे जहां से जाते हैं
वहां भी रहते हैं
और जहां पहुंचते हैं
वहां धमाल तो मचाते ही हैं
यही शब्‍दशक्ति है।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

aisa hai kya???

अरुण चन्द्र रॉय said...

bahut sundar rachna jee!

शिखा कौशिक said...

aisa kabhi na ho .shabd hamesha aapke sath ho ..

वीरेंद्र सिंह said...

Badia hai..

Satish Saxena said...

बढ़िया !
शब्द अमर हैं ....शुभकामनायें आपको !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

शब्दों ने साथ नहीं छोड़ा- वर्ना अपनी यह अभिव्यक्ति कैसे करती?

प्रतुल वशिष्ठ said...

@ ये कैसा बहाना?...... बात न करने का.
यदि चुप ही रहना है तो शब्दों पर काहे जिप्सी होने का आरोप लगा रहे हो?

शब्दों का होता नहीं एक ठिकाना.
कभी अभिधा के घर तो कभी लक्षणा की हवेली में टिक जाना.
और कभी-कभी तो व्यंजना के कक्ष में देर तक छिपकर समय बिताना.